VIKASH KUMARअतिथि लेखक,उर्दू शायरी,हिंदी कविताएँ February 11, 2019 0 Minutes
फ़रवरी 2019 में न्यू यॉर्क के एक होटेल के कमरे से मैंने ज़िंदगी की जदोजहद को शब्दों में पिरोने की कोशिश की । आशा है आपको पसंद आएगी ।
साँझ हुई परदेस में
दिल देश में डूब गया
अब इस भागदौड़ से
जी अपना ऊब गया
वरदान मिलने की चाह नहीं
मेहनत का फ़ल ही मिल जाता
किसको को क्या मिला यहाँ
हिसाब में वक़्त ख़ूब गया
मंज़िल अभी दूर सही
वक़्त अपना मजबूर सही
फिर भी मैं चला वहीं
जहाँ दिल महबूब गया
सुंदर!💫👌
LikeLike