नमोगाथा ( हिंदीमे)

गहरा, घना अंधेरा सारा संसार जहां प्रकाश में नहा रहा है, वहीं भरतखंड कितने बरसोंतक घने अंधकार में खोया हुआ पडा था। कभी रामकृष्ण का यह देश हरे शापसे बिलकुल जम गया था। भगवान ने भी उस पर दया नहीं की, लेकिन एक दिन करुणा के उस समुद्र की आँखें इस पर आ गयी। उसका… Continue reading नमोगाथा ( हिंदीमे)

जनता देखती पर चुप रहा करती.

आज के दिनों के लिये सही है

सच्चिदानन्द सिन्हा

रुधिर तो खौलता रहता ,मुख से कुछ नहीं कहता ।
सुनाना चाहता भी तब ,नहीं कोई सुना करता।।

बारूद का गोला , कभी जब फूट पड़ता है ।
धधकती अग्नि बन शोले ,कवच को तोड़ देता है।।

बैलेट जब निकलते हैं , दिग्गज डोल हैं जाते।
कुर्सी घिसक उनकी, जमीं पर है नजर आते ।।

अचानक आसमा्ँ से गिर,जमीं पर आ तभी जते।
उनका ताज तत्तक्षण ही सर से उतर जाते ।।

आम सा एक नागरिक, बन तभी जाते ।
मुफ्त मे ऐश करते थे , वे सब कुछ चले जाते।।

नशा जब तख्त का उनका ,टूटकर दूर हो जाता ।
कुछ चाल मस्तिष्क फिर नया,कुछ ढ़ूँढ़ है लेता ।।

मकसद सिर्फ है उनका ,गद्दी को पकड़ रखना ।
जनता भाँड़ में जाये ,मतलब क्यों भला रखना ।।

अगला फिर समय आये ,शगूफा फिर निकालेगें ।
चतुर होते बडे खुद ये ,नया फिर कुछ निकालेगें ।।

पता है खूब इनको…

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नमोभारत

अंधार, काळाकभिन्न अंधार सारे जग प्रकाशात नाहून निघत असताना भरतखंड मात्र काळाकभिन्न अंधारात खितपत पडला होता वर्षानूवर्षे. कधीकाळी रामकृष्णांचा असलेला हा देश हिरव्या शापामुळे जणू गोठून गेला होता. देवालाही त्याची दया येत नव्हती, पण एक दिवस करुणेच्या त्या सागराची नजर या भरतखंडावर पडली. त्याचे करुणामय अंत:करण द्रवले आणि त्याने या भरतखंडाच्या उद्धाराची जबाबदारी आपल्या प्रिय… Continue reading नमोभारत

साँझ हुई परदेस में – विकाश कुमार

VIKASH KUMARअतिथि लेखक,उर्दू शायरी,हिंदी कविताएँ February 11, 2019 0 Minutes फ़रवरी 2019 में न्यू यॉर्क के एक होटेल के कमरे से मैंने ज़िंदगी की जदोजहद को शब्दों में पिरोने की कोशिश की । आशा है आपको पसंद आएगी ।  साँझ हुई परदेस मेंदिल देश में डूब गयाअब इस भागदौड़ सेजी अपना ऊब गया वरदान मिलने की चाह… Continue reading साँझ हुई परदेस में – विकाश कुमार

मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं – विकाश कुमार

VIKASH KUMARअतिथि लेखक,उर्दू शायरी,हिंदी कविताएँ March 11, 2019 0 Minutes चादरों पर अब सलवटें नहीं पड़तीकपड़े भी इधर उधर बिखरें नहींना नयी फ़रमाहिशे हैं हर दिनरोज़ अब यही कहानी है बच्चों के बिनक्यूँकि मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं अब अख़बार पे कोई हक़ नहीं जताताहमें कोई हमारी उम्र याद नहीं दिलाताबेजान हर कमरा है हर… Continue reading मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं – विकाश कुमार

Help me to give Mosul the Knowledge it deserve!

We can help also…..

Mosul Eye

“Let it Be a Book, Rising from the Ashes” – Mosul Eye

You can contribute here : Fundraising for Mosul: Knowledge for Mosul

Mosul’s many libraries used to be housing the most precious and valuable manuscripts and rare prints in the region, and its libraries used to be the destination for anyone who’s looking for those treasures. And in a devastating assault on the humanity heritage in Mosul, ISIL devastated Mosul’s libraries, among the devastation it inflicted on the city, wrecking those libraries by stealing, destroying and burning those treasures, under different excuses. Once as “useless science”, another as “Illegitimate science”, and last but not least, “blasphemous books”!
The only copy of Encyclopaedia of Islam in Mosul was destroyed by ISIS when they destroyed the library. Help me to give Mosul a copy of E.J. Brill’s First Encyclopaedia of Islam, 1913-1936
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This Man Is Trying To Rebuild A…

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अब कोई नहीं रहता !!

सुंदर कविता

मेरी कलम से...


मेरे दिल में…
अब कोई नहीं रहता !!
दस्तकें होती हैं, लेकिन
चुप ये रहता है,
ये उनसे कुछ नहीं कहता…
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
खामोशी वहां रहती है,
जहाँ शोर था कभी मचता…
खुशियां बहती थीं पहले तो,
बस अब सिर्फ खून है बहता…
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
दीवारें अब मैली हैं…
यादों की धूल जो फैली है…
कमजोर नहीं था दिल मेरा भी !!
पर कबतक वो यूँही सहता !!
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
अँधेरे ही अँधेरे अब दिखने लगे हैं,
क़दमों के निशाँ थे जो, अब मिटने लगें हैं…
चहल-पहल रहती पहले तो !!
अब क्यों !! आहत से भी है डरता ??
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
मेरे दिल में…
अब कोई नहीं रहता !!
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मैं अब भी सफर करती हूँ… 

गोष्टी सुरस आणि मनोरंजक व बरच काही

आज के महिला दिन को समर्पित प्रतिभा गुप्ता की ये कविता ……. फिरसे शेअर कर रहा हुं.

मैं डरती हूँ, घबराती हूँ, तुम्हारे इस बदलते जमाने से। मैं सम्भलती हूँ, अकड़ दिखाती हूँ, तुम्हारे इसी बदलते जमाने से। मैं हूँ आज की, पर हूँ पुरानी सी, मैं रूह हूँ आवाज़ की, पर हूँ कहानी सी। मुझे सुन रहे हो तो सुनो! मैं चलती हूँ उन सूनी सड़कों पर अब भी रात में, […]

via मैं अब भी सफर करती हूँ…  — mynthdiary

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