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Month: July 2018
गडचिरोलीचा प्राचीन खजिना! — हवा, पाणी आणि अभि…
वर्धम.. तालुका- सिरोंचा. जिल्हा- गडचिरोली. दाट जंगलाचा परिसर, नक्षलवाद प्रभावित भाग. तिथं प्राचीन जीवाश्मांचा अतिशय मौल्यवान खजिना सापडलाय. मोठाले वृक्ष जीवाश्मांच्या रूपात सापडतात. इतकंच नव्हे तर डायनासोरची अंडी, इतर अवशेष, मासे, इतर जीवांचे जीवाश्मसुद्धा इथं आढळतात. बरेचशा नमुन्यांना आतापर्यंत ‘पाय फुटलेत’, पण आता वन विभाग तिथं फॉसिल पार्क विकसित करतोय.. एकदा पाहिलंच पाहिजे असं हे… Continue reading गडचिरोलीचा प्राचीन खजिना! — हवा, पाणी आणि अभि…
प्रबुद्ध
हम सच को सच नहीं कहते न ही झूंठ को झूंठ कहते हैं हम सही को नहीं कहते कि सही है और न कहते हैं गलत को गलत बस देखते रहते हैं खामोश, चुपचाप दुनिया को अपने सामने से गुज़रते कभी अखबार की सुर्खियों में कभी टेलीविज़न के स्क्रीन पर और कभी फ़ेसबुक की वाल […]… Continue reading प्रबुद्ध
अपने आप को
मिलना — The REKHA SAHAY Corner!
कभी आ भी जाना बस वैसे ही जैसे परिंदे आते है आंगन में या अचानक आ जाता है कोई झोंका ठंडी हवा का जैसे कभी आती है सुगंध पड़ोसी की रसोई से आना जैसे बच्चा आ जाता है बगीचे में गेंद लेने या आती है गिलहरी पूरे हक़ से मुंडेर पर जब आओ तो दरवाजे […]… Continue reading मिलना — The REKHA SAHAY Corner!
जीवन में बचाने लायक क्या है ? — Atul Kumar Rai
एक मित्र बड़े परेशान रहते थे कि नौकरी नहीं है और जिम्मेदारी चक्रवृद्धि ब्याज की तरह बढ़ रही है। बाल पक गए,शादी न हुई,घर भी नहीं बना,सब डिग्री और योग्यता माटी में मिली जा रही है। मित्र दिन-रात मेहनत करते।शहर के सभी मंदिरों में दीप और धूप जलाकर नौकरी की माला जपते। उम्मीदों का रोज… via… Continue reading जीवन में बचाने लायक क्या है ? — Atul Kumar Rai
शेर -ओ-नगमा – खुमार बाराबंकवी
कभी शेर-ओ-नगमा बनके कभी आँसूओ में ढलके वो मुझे मिले तो लेकिन, मिले सूरते बदलके कि वफा की सख़्त राहे कि तुम्हारे पाव नाज़ुक न लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ-साथ चलके न तो होश से ताल्लुक न जूनू से आशनाई ये कहाँ पहुँच गये हम तेरी बज़्म से निकलके – खुमार बाराबंकवी