तन्हा कभी जब बैठ गुमसुम, सोंचता हूँ मैं । सदियों पुराने गाँव में, कुछ ढूँढ़ता हूँ मैं ।। अपने गाँव की गलियां, कीचड़ से भरे नाले। मिट्टी की बनी दीवार को ,भी ढूँढ़ता हूँ मैं ।। घर के सामने बैठी, गोबर सानती दादी । उपले थापती दीवार पर भी, देखता हूँ मैं ।। स्नेह से […]
Achha likha apne..
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