आजच्या स्थितीवर भाष्य करणाऱ्या दोन कविता. वेगवेगळ्या काळात त्यावेळच्या नामवंत कवीनी लिहलेल्या.
■ तरस आता है उस देश पर
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तरस आता है आस्थाओं से पूर्ण और धर्म से रिक्त देश पर.
तरस आता है उस देश पर जो दबंग को नायक का दर्जा देता है,
और जो चमकीले विजेता को उदात्त होने का मान देता है.
तरस आता है उस देश पर जो सपने में किसी उन्माद से दूर भागता है,
पर जागने पर उसके आगे समर्पण कर देता है.
तरस आता है उस देश पर
जो बस शवयात्राओं में ही अपनी आवाज़ बुलंद करता है,
अपने खंडरों में ही डींगें हाँकता है,
और वह प्रतिकार तभी करता है
जब उसकी गर्दन तलवार और पत्थर के बीच आ चुकी होती है.
तरस आता है उस देश पर जिसका नेता लोमड़ी है,
जिसका दार्शनिक छलिया है,
और जिसकी कला चेपी एवं नक़ल की कला है.
तरस आता है उस देश पर
जो अपने नये शासक का स्वागत तुरही बजाकर करता है,
और…
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