नाच रही दुनियाँ सारी

कालगतीपर टिप्पणी करती यथार्थ कविता

सच्चिदानन्द सिन्हा

समयचक्र में नाच रही है, दुनियाँ की चीजें सारी ।

मैं ,मेरा का वहम पाल कर , रखा है सारा संसारी।।

तेरा,मेरा के इर्दगिर्द में ,भटक रही जगती सारी ।

चीजें तो सारी अनित्य फिर , क्यों करना मारा -मारी।।

विवेकशील सारे जीवों में , सबसे ज्यादा मेधा तेरी ।

कर्म रहेगा सर्वोत्तम तुम,ये सदा अपेक्षित है तेरी ।।

पर क्यों दलदल में डूब रहे ,क्या मारी गई मति तेरी?

क्यों विवेक से काम न लेते , कैसी ये कुमति घेरी ।।

समय तो कभी नहीं रूकता, द्रुतगति से चलता जाता।

जो कद्र नहीं करता इसका,जीवन भर वह पछताता ।।

करते जो सम्मान समय का, पाते भी उनसे सम्मान।

साधारण इन्सान से , एकदिन बनता बहुत महान ।।

जो अहम त्याग कर्तब्यनिष्ठ हो ,उचित देता सबको सम्मान।

वह मानव ,मानव से उपर उठ, बन जाता है देव समान।।

संत-तुल्य वही मानव को, समय दिलाता है सम्मान ।

साधारण मानव कर्मों…

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