मैं अब भी सफर करती हूँ… 

गोष्टी सुरस आणि मनोरंजक व बरच काही

आज के महिला दिन को समर्पित प्रतिभा गुप्ता की ये कविता ……. फिरसे शेअर कर रहा हुं.

मैं डरती हूँ, घबराती हूँ, तुम्हारे इस बदलते जमाने से। मैं सम्भलती हूँ, अकड़ दिखाती हूँ, तुम्हारे इसी बदलते जमाने से। मैं हूँ आज की, पर हूँ पुरानी सी, मैं रूह हूँ आवाज़ की, पर हूँ कहानी सी। मुझे सुन रहे हो तो सुनो! मैं चलती हूँ उन सूनी सड़कों पर अब भी रात में, […]

via मैं अब भी सफर करती हूँ…  — mynthdiary

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