उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो अब गोविन्द न आयेंगे। कब तक आस लगाओगी तुम बिके.. हुए अखबारों से। कैसी रक्षा मांग रही हो दु:शासन…. दरबारों से। स्वंय… जो लज्जाहीन पड़े हैं वे क्या लाज बचायेंगे। उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो अब गोविन्द न आयेंगे।Il१॥ कल तक केवल अंधा राजा अब गूंगा बहरा भी है। होंठ सिल दिये […]
